03-04-96  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

‘सेवाओं के साथ-साथ बेहद की वैराग्य वृत्ति द्वारा पुराने वा व्यर्थ संस्कारों से मुक्त बनो’’

आज बेहद का बाप अपने बेहद के सदा सहयोगी साथियों को देख रहे हैं। चारों ओर के सदा सहयोगी बच्चे, सदा बाप के दिल पर दिलतख्तनशीन, निराकार बाप को अपना अकाल तख्त भी नहीं है लेकिन तुम बच्चों को कितने तख्त हैं? तो बापदादा तख्तनशीन बच्चों को देख सदा हर्षित रहते हैं-वाह मेरे तख्तनशीन बच्चे! बच्चे बाप को देख खुश होते हैं, आप सभी बापदादा को देख खुश होते हो लेकिन बापदादा कितने बच्चों को देख खुश होते हैं क्योंकि हर एक बच्चा विशेष आत्मा है। चाहे लास्ट नम्बर भी है लेकिन फिर भी लास्ट होते भी विशेष कोटो में कोई, कोई में कोई की लिस्ट में है। इसलिए एक-एक बच्चे को देख बाप को ज्यादा खुशी है वा आपको है? (दोनों को) बाप को कितने बच्चे हैं! जितने बच्चे उतनी खुशी और आपको सिर्फ डबल खुशी है, बस। आपको परिवार की भी खुशी है लेकिन बाप की खुशी सदाकाल की है और आपकी खुशी सदाकाल है या कभी नीचे ऊपर होती है?

बापदादा समझते हैं कि ब्राह्मण जीवन का श्वास खुशी है। खुशी नहीं तो ब्राह्मण जीवन नहीं और अविनाशी खुशी, कभी-कभी वाली नहीं, परसेन्टेज़ वाली नहीं। खुशी तो खुशी है। आज 50 परसेन्ट खुशी है, कल 100 परसेन्ट है, तो जीवन का श्वास नीचे ऊपर है ना! बापदादा ने पहले भी कहा है कि शरीर चला जाए लेकिन खुशी नहीं जाए। तो यह पाठ सदा पक्का है या थोड़ा- थोड़ा कच्चा है? सदा अण्डरलाइन है? कभी-कभी वाले क्या होंगे? सदा खुशी में रहने वाले पास विद् ऑनर और कभी-कभी खुशी में रहने वालों को धर्मराजपुरी पास करनी पड़ेगी। पास विद् ऑनर वाले एक सेकण्ड में बाप के साथ जायेंगे, रूकेंगे नहीं। तो आप सब कौन हो? साथ चलने वाले या रूकने वाले? (साथ चलने वाले) ऐसा चार्ट है? क्योंकि विशेष डायमण्ड जुबली के वर्ष में बापदादा की हर एक बच्चे के प्रति क्या शुभ आशा है, वह तो जानते हो ना?

बापदादा ने सभी बच्चों का चार्ट देखा। उसमें क्या देखा कि वर्तमान समय के प्रमाण एक बात का विशेष और अटेन्शन चाहिए। जैसे सेवा में बहुत उमंग- उत्साह से आगे बढ़ रहे हो और डायमण्ड जुबली में विशेष सेवा का उमंग- उत्साह है, इसमें पास हो। हर एक यथा शक्ति सेवा कर रहे हैं और करते रहेंगे। लेकिन अब विशेष क्या चाहिए? समय समीप है तो समय की समीपता के अनुसार अब कौन सी लहर होनी चाहिए? (वैराग्य की) कौन सा वैराग्य - हद का या बेहद का? जितना सेवा का उमंग-उत्साह है, उतना समय की आवश्यकता प्रमाण स्व-स्थिति में बेहद का वैराग्य कहाँ तक है? क्योंकि आपके सेवा की सफलता है जल्दी से जल्दी प्रजा तैयार हो जाए। इसलिए सेवा करते हो ना? तो जब तक आप निमित्त आत्माओं में बेहद की वैराग्य वृत्ति नहीं है, तो अन्य आत्माओं में भी वैराग्य वृत्ति नहीं आ सकती और जब तक वैराग्य वृत्ति नहीं होगी तो जो चाहते हो कि बाप का परिचय सबको मिले, वह नहीं मिल सकता। बेहद का वैराग्य सदाकाल का वैराग्य है। अगर समय प्रमाण वा सरकमस्टांश प्रमाण वैराग्य आता है तो समय नम्बरवन हो गया और आप नम्बर दो हो गये। परिस्थिति या समय ने वैराग्य दिलाया। परिस्थिति खत्म, समय पास हो गया तो वैराग्य पास हो गया। तो उसको क्या कहेंगे - बेहद का वैराग्य या हद का? तो अभी बेहद का वैराग्य चाहिए। अगर वैराग्य खण्डित हो जाता है तो उसका मुख्य कारण है - देह-भान। जब तक देह-भान का वैराग्य नहीं है तब तक कोई भी बात का वैराग्य सदाकाल नहीं होता है, अल्पकाल का होता है। सम्बन्ध से वैराग्य - यह बड़ी बात नहीं है, वह तो दुनिया में भी कईयों को दिल से वैराग्य आ जाता है लेकिन यहाँ देह-भान के जो भिन्न-भिन्न रूप हैं, उन भिन्नभिन्न रूपों को तो जानते हो ना? कितने देह-भान के रूप हैं, उसका विस्तार तो जानते हो लेकिन इस अनेक देह-भान के रूपों को जानकर, बेहद के वैराग्य में रहना। देह-भान, देही-अभिमान में बदल जाए। जैसे देह-भान एक नेचुरल हो गया, ऐसे देही-अभिमान नेचुरल हो जाए क्योंकि हर बात में पहला शब्द देह ही आता है। चाहे सम्बन्ध है तो भी देह का ही सम्बन्ध है, पदार्थ हैं तो देह के पदार्थ हैं। तो मूल आधार देह-भान है। जब तक किसी भी रूप में देह-भान है तो वैराग्य वृत्ति नहीं हो सकती। और बापदादा ने देखा कि वर्तमान समय जो देह-भान का विघ्न है उसका कारण है कि देह के जो पुराने संस्कार हैं, उससे वैराग्य नहीं है। पहले देह के पुराने संस्कारों से वैराग्य चाहिए। संस्कार स्थिति से नीचे ले आते हैं। संस्कार के कारण सेवा में वा सम्बन्ध-सम्पर्क में विघ्न पड़ते हैं। तो रिजल्ट में देखा कि देह के पुराने संस्कार से जब तक वैराग्य नहीं आया है, तब तक बेहद का वैराग्य सदा नहीं रहता। संस्कार भिन्न-भिन्न रूप से अपने तरफ आकर्षित कर लेते हैं। तो जहाँ किसी भी तरफ आकर्षण है, वहाँ वैराग्य नहीं हो सकता। तो चेक करो कि मैं अपने पुराने वा व्यर्थ संस्कार से मुक्त हूँ? कितनी भी कोशिश करेंगे, करते भी हैं कि वैराग्य वृत्ति में रहें लेकिन संस्कार कोई-कोई के पास या मैजारिटी के पास किस न किस रूप में ऐसे प्रबल हैं जो अपनी तरफ खींचते हैं। तो पहले पुराने संस्कार से वैराग्य। संस्कार न चाहते भी इमर्ज हो जाते हैं क्यों? चाहते नहीं हो लेकिन सूक्ष्म में संस्कारों को भस्म नहीं किया है। कहाँ न कहाँ अंश मात्र रहे हुए हैं, छिपे हुए हैं वह समय पर न चाहते हुए भी इमर्ज हो जाते हैं। फिर कहते हैं - चाहते तो नहीं थे लेकिन क्या करें, हो गया, हो जाता है ...... यह कौन बोलता है - देह-भान या देही-अभिमान? तो बापदादा ने देखा कि संस्कारों से वैराग्य वृत्ति में कमजोरी है। खत्म किया है लेकिन अंश भी नहीं हो, ऐसा खत्म नहीं किया है और जहाँ अंश है तो वंश तो होगा ही। आज अंश है, समय प्रमाण वंश का रूप ले लेता है। परवश कर देता है। कहने में तो सभी क्या कहते हैं कि जैसे बाप नॉलेजफुल है वैसे हम भी नॉलेजफुल हैं, लेकिन जब संस्कार का वार होता है तो नॉलेजफुल हैं या नॉलेज पुल हैं? क्या हैं? नॉलेजफुल के बजाए नॉलेज पुल बन जाते हो। उस समय किसी से भी पूछो तो कहेंगे - हाँ, समझती तो मैं भी हूँ, समझता तो मैं भी हूँ, होना नहीं चाहिए, करना नहीं चाहिए लेकिन हो जाता है। तो नॉलेजफुल हुए या नॉलेज पुल हुए? (नॉलेजपुल अर्थात् नॉलेज को खींचने वाले) जो नॉलेजफुल है उसे कोई भी संस्कार, सम्बन्ध, पदार्थ वार नहीं कर सकता।

तो डायमण्ड जुबली मना रहे हो, डायमण्ड जुबली का अर्थ है - डायमण्ड बनना अर्थात् बेहद के वैरागी बनना। जितना सेवा का उमंग है उतना वैराग्यवृत्ति का अटेन्शन नहीं है। इसमें अलबेलापन है। चलता है.... होता है.....हो जायेगा.....समय आयेगा तो ठीक हो जायेगा..... तो समय आपका शिक्षक है या बाबा शिक्षक है? कौन है? अगर समय पर परिवर्तन करेंगे तो आपका शिक्षक तो समय हो गया! आपकी रचना आपका शिक्षक हो - ये ठीक है? तो जब ऐसी परिस्थिति आती है तो क्या कहते हो? समय पर ठीक कर लूँगी, हो जायेगा। बाप को भी दिलासा देते हैं - फिकर नहीं करो, हो जायेगा। समय पर बिल्कुल आगे बढ़ जायेंगे। तो समय को शिक्षक बनाना - यह आप मास्टर रचयिता के लिए शोभता है? अच्छा लगता है? नहीं। समय रचना है, आप मास्टर रचयिता हो। तो रचना मास्टर रचयिता का शिक्षक बनें यह मास्टर रचयिता की शोभा नहीं। तो अभी जो बापदादा ने समय दिया है, उसमें वैराग्य वृत्ति को इमर्ज करो क्योंकि सेवा की खींचातान में वैराग्यवृत्ति खत्म हो जाती है। वैसे सेवा में खुशी भी मिलती है, शक्ति भी मिलती है और प्रत्यक्षफल भी मिलता है लेकिन बेहद का वैराग्य खत्म भी सेवा में ही होता है। इसलिए अब अपने अन्दर इस वैराग्य वृत्ति को जगाओ। कल्प पहले भी बने तो आप ही थे कि और थे? आप ही हैं ना। सिर्फ मर्ज है, उसको इमर्ज करो। जैसे सेवा के प्लैन को प्रैक्टिकल में इमर्ज करते हो, तब सफलता मिलती है ना। ऐसे अभी बेहद के वैराग्य वृत्ति को इमर्ज करो। चाहे कितने भी साधन प्राप्त हैं और साधन तो आपको दिन प्रतिदिन ज्यादा ही मिलने हैं लेकिन बेहद के वैराग्य वृत्ति की साधना मर्ज नहीं हो, इमर्ज हो। साधन और साधना का बैलेन्स, क्योंकि आगे चलकर के प्रकृति आपकी दासी होगी। सत्कार मिलेगा, स्वमान मिलेगा। लेकिन सब कुछ होते वैराग्य वृत्ति कम नहीं हो। तो बेहद के वैराग्य वृत्ति का वायुमण्डल स्वयं में अनुभव करते हो कि सेवा में बिजी हो गये हो? जैसे दुनिया वालों को सेवा का प्रभाव दिखाई देता है ना! ऐसे बेहद के वैराग्य वृत्ति का प्रभाव दिखाई दे। आदि में आप सभी की स्थिति क्या थी? पाकिस्तान में जब थे, सेवा नहीं थी, साधन थे लेकिन बेहद के वैराग्यवृत्ति के वायुमण्डल ने सेवा को बढ़ाया।

तो जो भी डायमण्ड जुबली वाले हैं उन्हों में आदि संस्कार हैं, अब मर्ज हो गये हैं। अब फिर से इस वृत्ति को इमर्ज करो। आदि रत्नों के बेहद के वैराग्य वृत्ति ने स्थापना की, अभी नई दुनिया की स्थापना के लिए फिर से वही वृत्ति, वही वायुमण्डल इमर्ज करो। तो सुना क्या ज़रुरत है? साधन ही नहीं है और कहो, हमको तो वैराग्य है, तो कौन मानेगा? साधन हो और वैराग्य हो। पहले के साधन और अभी के साधनों में कितना अन्तर है? साधना छिप गई है और साधन प्रत्यक्ष हो गये हैं। अच्छा है साधन बड़े दिल से यूज़ करो क्योंकि साधन आपके लिए ही हैं, लेकिन साधना को मर्ज नहीं करो। बैलेन्स पूरा होना चाहिए। जैसे दुनिया वालों को कहते हो कि कमल पुष्प समान बनो तो साधन होते हुए कमल पुष्प समान बनो। साधन बुरे नहीं हैं, साधन तो आपके कर्म का, योग का फल हैं। लेकिन वृत्ति की बात है। ऐसे तो नहीं कि साधन के प्रवृत्ति में, साधनों के वश फंस तो नहीं जाते? कमल पुष्प समान न्यारे और बाप के प्यारे। यूज़ करते हुए उन्हों के प्रभाव में नहीं आये, न्यारे। साधन, बेहद की वैराग्य वृत्ति को मर्ज नहीं करे। अभी विश्व अति में जा रही है तो अभी आवश्यकता है - सच्चे वैराग्य-वृत्ति की और वह वायुमण्डल बनाने वाले आप हो, पहले स्वयं में, फिर विश्व में। तो डायमण्ड जुबली वाले क्या करेंगे? लहर फैलायेंगे ना? आप लोग तो अनुभवी हैं। शुरू का अनुभव है ना! सब कुछ था, देशी घी खाओ जितना खा सकते, फिर भी बेहद की वैराग्य वृत्ति। दुनिया वाले तो देशी घी खाते हैं लेकिन आप तो पीते थे। घी की नदियाँ देखी। तो डायमण्ड जुबली वालों को विशेष काम करना है - आपस में इकट्ठे हुए हो तो रूहरिहान करना। जैसे सेवा की मीटिंग करते हो वैसे इसकी मीटिंग करो। जो बापदादा कहते हैं, चाहते हैं सेकण्ड में अशरीरी हो जायें - उसका फाउण्डेशन यह बेहद की वैराग्य वृत्ति है, नहीं तो कितनी भी कोशिश करेंगे लेकिन सेकण्ड में नहीं हो सकेंगे। युद्ध में ही चले जायेंगे और जहाँ वैराग्य है तो ये वैराग्य है योग्य धरनी, उसमें जो भी डालो उसका फल फौरन निकलता। तो क्या करना है? सभी को फील हो कि बस हमको भी अभी वैराग्य वृत्ति में जाना है। अच्छा। समझा क्या करना है? सहज है या मुश्किल है? थोड़ा-थोड़ा आकर्षण तो होगी या नहीं? साधन अपने तरफ नहीं खींचेंगे? अभी अभ्यास चाहिए-जब चाहे, जहाँ चाहे, जैसा चाहिए - वहाँ स्थिति को सेकण्ड में सेट कर सके। सेवा में आना है तो सेवा में आये। सेवा से न्यारे हो जाना है तो न्यारे हो जाएं। ऐसे नहीं, सेवा हमको खींचे। सेवा के बिना रह नहीं सकें। जब चाहें, जैसे चाहें, विल पावर चाहिए। विल पावर है? स्टॉप तो स्टॉप हो जाए। ऐसे नहीं लगाओ स्टॉप और हो जाए क्वेश्चनमार्क। फुलस्टॉप। स्टॉप भी नहीं फुलस्टॉप। जो चाहें वह प्रैक्टिकल में कर सकें। चाहते हैं लेकिन होना मुश्किल है तो इसको क्या कहेंगे? विल पावर है कि पावर है? संकल्प किया - व्यर्थ समाप्त, तो सेकण्ड में समाप्त हो जाए।

बापदादा ने सुनाया ना कि कई बच्चे कहते हैं - हम योग में बैठते हैं लेकिन योग के बजाए युद्ध में होते हैं। योगी नहीं होते, योद्धे होते हैं और युद्ध करने के अगर संस्कार बहुतकाल रहे तो क्या बनेंगे? सूर्यवंशी वा चन्द्रवंशी? सोचा और हुआ। सोचना और होना, सेकण्ड का काम है। इसको कहते हैं - विल पॉवर। विल पॉवर है कि प्लैन बहुत अच्छे बनाते लेकिन प्लैन बनते हैं 10 और प्रैक्टिकल में होते हैं 5, ऐसे तो नहीं होता? सोचते बहुत अच्छा हैं - यह करेंगे, यह होगा, यह होगा लेकिन प्रैक्टिकल में अन्तर पड़ जाता है। तो अभी ऐसी विल पॉवर हो, संकल्प किया और कर्म में प्रैक्टिकल में हुआ पड़ा है, ऐसे अनुभव हो। नहीं तो देखा जाता है अमृतवेले जब बाप से रूहरिहान करते, बहुत अच्छी-अच्छी बातें बोलते हैं, यह करेंगे, यह करेंगे.....और जब रात होती तो क्या रिजल्ट होती? बाप को खुश बहुत करते हैं, बातें इतनी मीठी-मीठी करते हैं, इतनी अच्छी-अच्छी करते हैं, बाप भी खुश हो जाता, वाह मेरे बच्चे! कहते हैं - बाबा, बस आपने जो कहा ना, होना ही है। हुआ पड़ा है। बहुत अच्छी-अच्छी बातें करते हैं। कई तो बाप को इतना दिलासा दिलाते हैं कि बाबा हम नहीं होंगे तो कौन होगा। बाबा कल्प-कल्प हम ही तो थे, खुश हो जाते।

(हाल में पीछे बैठने वालों से) पीछे बैठने वाले अच्छी तरह से सुन रहे हो ना?

आगे वालों से पहले पीछे वाले करेंगे? बैठे पीछे हो लेकिन सबसे समीप दिल पर हो। क्यों? दूसरे को चांस देना यह सेवा की ना! तो सेवाधारी सदा बाप के दिल पर हैं। कभी भी ऐसे नहीं सोचना कि हम भी अगर दादियाँ होती ना तो जरा सा.......लेकिन सामने तो क्या दिल पर हो। और दिल भी साधारण दिल नहीं, तख्त है। तो दिलख्तनशीन हैं ना। कहाँ भी बैठे हो, चाहे इस कोने में बैठे हो, चाहे नीचे बैठे हो, चाहे कैबिन में बैठे हो... लेकिन बाप के दिल पर हो।

सभी डायमण्ड जुबली मनाने के लिए भागे हैं? तो सिर्फ दादियाँ डायमण्ड हैं या आप भी डायमण्ड हो? आप भी डायमण्ड हो ना! निमित्त शुरू वालों की मनाते हैं लेकिन पहले आप। अच्छा-डायमण्ड जुबली वाले हाथ उठाओ। डायमण्ड जुबली इन्हों की मनाते हो लेकिन आप नहीं होते तो मनाते कौन? शोभा तो मनाने वालों से है। तो सभी को मनाने की खुशी है क्योंकि समझते हैं कि इन्हों की डायमण्ड जुबली होना अर्थात् हमारा नम्बर आ ही गया। यह नि:स्वार्थ सेवाधारी हैं। इसलिए देखकरके खुशी होती है, ईर्ष्या नहीं होती है कि क्यों इन्हों का मनाते हैं, हमारा क्यों नहीं? क्या ऐसा सोचते हो कि इन्हों का ही क्यों मनाया जाता? सोचते हो? नहीं। बहुत खुशी है। यह आदि काल के रत्नों के त्याग का भाग्य है, जो किसको ईर्ष्या नहीं होती, खुशी होती है। और हमशरीक होंगे ना तो किसको ईर्ष्या भी होगी, क्यों हम भी तो हैं, हम भी तो हैं। लेकिन ये इन्हों के त्याग का भाग्य है इसलिए किसको ईर्ष्या नहीं होती। देखो, इन्हों के त्याग ने आप सबको लाया है। अगर ये निमित्त नहीं बनते, फॉरेन में भी आदि रत्न निमित्त बने तब तो आप पैदा हुए। तो अच्छी तरह से खूब धूमधाम से मनाओ। बापदादा भी खुश है। अच्छा।

10 वर्ष वालों का भी मनाते रहते हैं। डबल फॉरेनर्स का मनाया था ना। अभी इस ग्रुप में भी बहुत 10 वर्ष वाले होंगे। तो सभी चाहे 10 वर्ष वाले, चाहे 10 वर्ष से भी पहले वाले उन सभी को बापदादा दिल से मुबारक देकर मना रहे हैं। (सभी ने खूब तालियाँ बजाई) मनाना अर्थात् सबकी दुआयें लेना। यह तालियाँ बजाना अर्थात् आप सबको सभी की दुआयें मिली। और फर्स्ट टाइम वाले भी बहुत हैं, आप सब फर्स्ट टाइम वालों को फास्ट जाने की दुआयें। चाहे फर्स्ट टाइम वाले हैं, चाहे 10 वर्ष, 20 वर्ष वाले हैं लेकिन हर एक आत्मा इस ब्राह्मण परिवार की विशेष शोभा हो। एक रत्न भी कम होता है तो शोभा नहीं होती है। तो बापदादा सभी बच्चों को उसी नज़र से देखते हैं कि यह हर एक रत्न इस ब्राह्मण परिवार का श्रृंगार है। श्रृंगार हो ना? बहुत वैल्युएबल श्रृंगार हो। इसलिए अभी तक आपके जड़ चित्रों को कितना श्रृंगार करते रहते हैं। अभी लास्ट जन्म तक भी श्रृंगार होता रहता है। ऐसी खुशी है? भगवान का श्रृंगार बनना कम बात है क्या!

अच्छा-जो आदि रत्न हैं, जिनकी डायमण्ड जुबली मनाई जा रही है उनसे प्रश्न पूछते हैं कि आदि रत्नों को कौन सी बात बहुत सहज है? दूसरों को थोड़ा टाइम लगता है लेकिन आदि रत्नों को बहुत सहज और नेचुरल है, वह कौन सी बात? उत्तर दो। (बाबा को अपना बनाना)

सभा से

आप लोगों को अपना बनाना सहज है या मुश्किल है? अच्छा अपना बना लिया है या बना रहे हैं? बना लिया-पक्का? या कभी-कभी ऐसे (कांध पीछे) कर लेते हो? नाज़-नखरे तो नहीं करते हो? कभी-कभी बहुत खेल दिखाते हैं। तो बाप को तो अपना बनाया। बाप को अपना बनाना अर्थात् सदा साथ और हाथ का अनुभव करना। तो आदि रत्नों को बाप के साथ का अनुभव करना बहुत सहज है। क्योंकि साकार में साथ का अनुभव किया है। आपको फिर भी इमर्ज करना पड़ता है लेकिन इन्होंने प्रैक्टिकल तुम्हीं साथ रहना, खाना, चलना, फिरना...यह प्रैक्टिकल साकार में अनुभव किया है। तो साकार में अनुभव की हुई चीज़ सहज याद रहती है। ये इन्हों का लक है कि बाप के साथ का अनुभव ये जब चाहें तब कर सकते हैं। ऐसे है? लेकिन ड्रामा में आप लोगों के लिए खास एक लिफ्ट है, जो अव्यक्त रूप में आये हैं, साकार रूप में ड्रामानुसार पीछे आये हैं, उन्हों को एक्स्ट्रा लिफ्ट है, कौन सी लिफ्ट है? जब चाहो तब बापदादा की एक्स्ट्रा मदद मिलती है। संकल्प का एक कदम आपका और सहयोग के बहुत कदम बाप के। इसीलिए आपको एक्स्ट्रा लिफ्ट है। समझा? आप भी कम नहीं हो। अच्छा-

आदि रत्नों को पद्मगुणा बापदादा की सर्व सम्बन्धों से मुबारक हो, मुबारक हो।

चारों ओर के तख्तनशीन श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मायें, सदा बेहद के वैराग्य वृत्ति से वायुमण्डल बनाने वाले विशेष आत्मायें, सदा अपने श्रेष्ठ विशेषताओं को कार्य में लगाने वाले विशेष आत्मायें, सदा एक बाप के साथ और श्रीमत के हाथ को अनुभव करने वाले समीप आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

दादियों से

सबसे ज्यादा दुआयें आप लोंगों को मिलती हैं। सबको इन निमित्त रत्नों से प्यार क्यों है, कारण क्या? क्योंकि इन्हों का बाप से हर श्वास में प्यार है, हर श्वास में बाबा-बाबा है ना? नेचुरल है, मेहनत नहीं है। मेहनत करनी नहीं पड़ती। तो जितना इन्हों का बाप से प्यार है, उतना आप का इन्हों से है क्योंकि साकार में निमित्त हैं, बाप समान हैं। चाहे कभी किसी को शिक्षा भी देती हैं, शिक्षा के समय किसको दिल में लगता भी है लेकिन फिर अनुभव करते हैं कि हमारे कल्याण की भावना से शिक्षा दी। तो भावना शुभ है - इसलिए शिक्षा दिल से लगती है। और निमित्त बनने वालों का विशेष बैकबोन बाप है। चाहे बोल इन्हों के हैं लेकिन बैकबोन बाप है। कभी भी इन्हों के मुख से ‘मैं’ शब्द नहीं निकलेगा। बाबा-बाबा निकलेगा। तो ये याद का प्रूफ है। ‘मैं पन’ बाबा में समा गया। अच्छा

(आज बहुत खुशी हो रही है कि 60 वर्ष आपकी पालना में बीते हैं)

खुशी तो आप का श्वास है, आप की खुशी कोई छीन नहीं सकता। कभी खुशी गुम होती है? चाहे कोई आदि रत्न स्थापना के हैं और कोई आदि रत्न सेवा की स्थापना के, दोनों का अपना-अपना महत्व है। ये स्थापना के आदि रत्न वो सेवा के आदि रत्न। आपने स्थापना की लेकिन सेवा की वृद्धि तो इन्होंने की।

अच्छा। ओम् शान्ति।